भोर हुई और एक सुहानी सुबह में वोह
खिड़की के बहार धुंध ने मन लिया मोह
चिड़िया की चहचहाट और पत्तो की सरसराहट
धीमी धीमी हवा कुछ एहसास कराती है जैसे की वोह
ओस पर पड़ी बूंदों में सूरज की रौशनी
झिलमिल करती हुई किरणों में वोह
धूंद की सफ़ेद चादर में किसका है यह चेहरा
फलक से आई क्या परि है वोह
सुबह के इस मुख़्तसर पल को छुलू इन उंगलियों से
सास में समां गई एक खुशबू बनकर क्या कहू कितनी खूबसूरत है वोह
भोर हुई और एक सुहानी सुबह में वोह