13) “राहें”

यू काफिये की तरह राहें जुडती रहे

और हम काफिर की तरह चलते रहे

 

मंजिल पास होने का होता है गुमा हर दयार पर

जिंदादिली कहे बस चलता चल राही ख्वाबों के इस रार पर

 

कदम कदम पर इम्तिहाँ और न कोई खैरख्वाह

बस ऐ खुदा अब तो तेरी रेहमत की है इल्तजाह

 

सितारों की मजलिश में मेरे भी वजूद का हो मक़ाम

हर नज़र की मेहर हो तो लिख दू बुलंदी पर अपना नाम

 

ऐ ज़िन्दगी अब तो होने लगी है तुझसे आशिकी

कोई रेहबर हो न हो और कितनी भी सूनी हो राहें

मुझे अपनी आग़ोश में ले ले फैलाकर अपनी बाहें

 

यू काफिये की तरह राहें जुडती रहे

और हम काफिर की तरह चलते रहे

 

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